सेव इंडियन फ़ैमिली फ़ाउंडेशन भारत में एक प्रमुख सामाजिक संगठन है जो लिंगभेदी कानूनों, कुशासन और भारतीय समाज को नुकसान पहुंचाने वाली नीतियों के खिलाफ आवाज उठाता है,,

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जयपुर 18 जून 2020।(निक विशेष) 19th जून को फादर्स डे है। पारिवारिक न्यायालयों की संवेदनहीनता और पक्षपातपूर्ण सरकारी नीतियों की वजह से इस वर्ष भी फादर्स डे के अवसर पर भारत में लाखों बच्चे अपने पिता को न तो देख ही पाएंगे और न ही अपने पिता के साथ समय ही व्यतीत कर पाएंगे।
सरकार की गलत नीतियों के कारण, भारत में हर साल लगभग 2,50,000 बच्चे अपने पिता से अलग हो जाते हैं। ऐसे बच्चों के जीवन में पिता के प्यार को शामिल करने के लिए सरकार कुछ भी नहीं करती है।। वास्तव में, ऐसे पिता जो अपने बच्चों से मिलने या उनकी परवरिश में सहयोग करने का प्रयास भी करते हैं, उनको पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाने का खतरा हर समय बना रहता है।
“प्रति वर्ष लगभग 2,50,000 बच्चे अपने ही पिता से अलग कर दिए जाते हैं और यदि वह अपने बच्चों से मिलने की कोशिश भी करते हैं तो पुलिस उनको गिरफ्तार करने पहुँच जाती है”, यह कहना है एसआईएफएफ के सह-संस्थापक अनिल मूर्ति जी का।

वह आगे कहते हैं “दशकों से भारत के न्यायालयों ने अत्यधिक विरोधात्मक वैवाहिक विवादों को बढ़ावा दिया है। अक्सर, न्यायालयों द्वारा झूठे मुकदमों को मंजूरी दी जाती है और इन सब के बीच में, बच्चों को केवल सौदेबाजी के एक जरिए के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा है।”
भारत में हर वर्ष तकरीबन 7 लाख से 10 लाख शादीशुदा दंपति अलग हो रहे हैं। इस अलगाव का मुख्य कारण सहनशीलता की कमी और शादीशुदा जिंदगी में छोटी-छोटी बातों में एक दूसरे के प्रति त्याग की भावना की प्रवृत्ति न होना है और इस सब के बीच में अक्सर बच्चों को ही सबसे ज्यादा नुकसान भुगतना पड़ता है।
भारत में पारिवारिक न्यायालय इस बात का निर्णय करने में पूर्णतया विफल साबित हुए हैं कि बच्चों का सर्वोत्तम हित केवल तभी होता है जब दोनों जैविक माता-पिता बच्चों के पालन-पोषण में समान रूप से शामिल होते हैं। इसके बजाय अदालतों ने वैवाहिक विवादों को अत्यधिक पेचीदा बना दिया है जिससे पत्नी और पति के बीच वैवाहिक विवाद व तनाव और अधिक बढ़ जाता है और इस सब विवाद से उन दोनों के बीच बच्चों के लिए सुलह की कोई भी संभावना शेष नहीं रह जाती है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) को भी इस स्थिति की कोई परवाह नहीं है। बच्चों के लिए अलग से कोई एक मंत्रालय नहीं बनाया गया है अपितु महिला आयोग से ही बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा करने की अपेक्षा की जाती है। महिला और बाल कल्याण मंत्रालय मुख्यतः केवल ‘महिला मंत्रालय’ के रूप में ही कार्य करता है। जिसके चलते सबसे अधिक कष्ट बच्चों को ही सहन करना पड़ता है।
“भारत में बच्चों के लिए अलग से कोई मंत्रालय नहीं है। यही कारण है कि तलाकशुदा माता-पिता के बच्चों के प्रति कोर्ट व समाज की संवेदनशीलता व नीतियां कम ही हैं”, यह कहना है एसआईएफएफ के महासचिव समीर गोयल जी का।
अमेरिका में, पितृविहीनता या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पितृत्व का अभाव आज एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या बन गई है। किशोर बच्चों द्वारा किये जाने वाले अधिकांश अपराध व हिंसा की प्रवृति उनके जीवन में पिता की कमी के कारण हो रहे है। यदि भारत में भी इसी तरह बड़े पैमाने पर पितृविहीनता की अनुमति दी जाती रही, तो लाखों बच्चों को शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करना पड़ेगा और परिणामस्वरूप हमारे समाज में अपराधों में भारी वृद्धि होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

    इस फादर्स डे पर हमारी मुख्य मांगें इस प्रकार है:
    1.सरकार और कंपनियों को “सिंगल पेरेंटिंग” का महिमामंडन करना बंद करना चाहिए । उन्हें यह समझना चाहिए कि सांख्यिकीय रूप से सिंगल पेरेंट परिवार के बच्चों को व्यवहार संबंधित विवादों का सामना करने की अधिक संभावना है और उनके हिंसा और दुर्व्यवहार के शिकार होने की संभावना भी सबसे अधिक होती है ।
    2.सरकार को बच्चों के लिए अलग से एक मंत्रालय बनाना चाहिए ।
    3.माता या पिता दोनों में से किसी एक द्वारा भी बच्चे को दूसरे जीवनसाथी से अलग करना या बच्चे के दिमाग में दूसरे जीवनसाथी के खिलाफ जहर भरना भी एक दंडनीय अपराध होना चाहिए।
    4.ऐसे माता अथवा पिता जिसके पास बच्चे की कस्टडी है, उसे बच्चे के जीवन में दूसरे माता अथवा पिता की भी सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी और इसके लिए निरंतर प्रयास भी करने होंगे। यदि इस तरह का प्रयास करने के बजाय, महिलाएं बच्चे को पिता से दूर करती हैं, तो उन्हें न्यायालय द्वारा दंडित किया जाना चाहिए और उन पर भारी जुर्माना लगाना चाहिए।
    5.बच्चों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अपने पिता से संपर्क करने का अधिकार होना चाहिए। यदि बच्चे और पिता को वीडियो कांफ्रेंस पर बात करने के इस अधिकार से वंचित किया जाता है तो न्यायालय को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
    6.सरकार को प्रवासी भारतीयों (NRI) के लिए अलग अदालतें बनानी चाहिए ताकि एनआरआई पिता को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए अपने बच्चों तक पहुंचने के लिए अदालतों के चक्कर न लगाना पड़े।
    7.पारिवारिक न्यायालयों द्वारा भरण-पोषण या गुजारा भत्ता से संबंधित किसी भी मामले की सुनवाई करने तथा इससे संबंधित कोई भी आदेश पारित करने से पहले बच्चों के पालन पोषण व परवरिश में माता पिता की बराबर की भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।

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