एफआईआर दर्ज न करने की शिकायत पर विभागीय कार्यवाही की जायेगी, पुलिस मुख्यालय द्वारा सभी जिला पुलिस अधीक्षकों को तत्काल एफआईंआर दर्ज करने के लिये स्पष्ट रूप से निर्देश,

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डीजीपी मोहनलाल लाठर

*निर्बाध पंजीकरण की नीति का अक्षरशः पालन*
संज्ञेय अपराध की सूचना पर तत्काल एफआईंआर दर्ज करने के निर्देश.
जयपुर,1 मई 2022।(निक क्राइम)राजस्थान पुलिस द्वारा निर्बाध पंजीकरण की नीति का अक्षरशः पालन किया जा रहा है। पुलिस द्वारा पूर्णतया विधिसम्मत एवं माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप ही दर्ज करने योग्य परिवाद एफआईआर के रूप में दर्ज किये जा रहे हैं। पुलिस मुख्यालय द्वारा सभी जिला पुलिस अधीक्षकों को समस्त संज्ञेय अपराध की सूचना प्राप्त होने पर तत्काल एफआईंआर दर्ज करने के लिये स्पष्ट रूप से निर्देशित किया गया है। किसी परिवादी की एफआईआर थाने पर दर्ज नहीं होने पर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में सीधे ही एफआईआर दर्ज कराने की सुविधा उपलब्ध कराई गई है ।

महानिदेशक पुलिस एम एल लाठर ने बताया कि राजस्थान एक मात्र ऐसा राज्य है जहां निर्बाध पंजीकरण की व्यवस्था की जांच के लिए पुलिस मुख्यालय से डिकॉय ऑपरेशन भी कराये जा रहे हैं। कई थानाधिकारियों के विरूद्व एफआईआर दर्ज न करने की शिकायत पर विभागीय कार्यवाही भी की गई है। उल्लेखनीय हैं कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अनुसार पुलिस को संज्ञेय अपराधों में एफआईआर दर्ज करने का अधिकार है परन्तु धारा 155 के अनुसार असंज्ञेय अपराधो में पुलिस न्यायालय के आदेश के उपरान्त ही जांच कर सकती है। लाठर ने बताया कि पुलिस को प्राप्त होने वाले सभी परिवादों को सीसीटीएनएस पर दर्ज करने के निर्देश दिये गए हैं तथा पुलिस मुख्यालय द्वारा लगातार इसकी मॉनिटरिंग की जाती है। सभी परिवादियों की सुनवाई कर नियमानुसार कार्यवाही करने के उद्देश्य से यह व्यवस्था लागू की गई है। उन्होंने बताया कि पुलिस को प्राप्त होने वाले परिवादो में संज्ञेय अपराध की सूचना होने की स्थिति मे एफआईआर दर्ज की जाती है परन्तु सभी परिवादों को एफआईआर के रूप में दर्ज नही किया जा सकता है। सीसीटीएनएस पर दर्ज परिवादों में से बहुत सारे परिवाद पूर्व में दर्ज किसी एक ही मुकदमे के विषय में त्वरित कार्यवाही, निष्पक्ष, मुलजिमों की गिरफ्तारी, अनुसंधान परिवर्तन इत्यादि के बारे में बार बार दिए जाते हैं।
कई बार तो एक ही मुकदमे से सम्बन्धित दर्जनों परिवाद दर्ज हो जाते है। कई परिवाद किसी एक दर्ज मुकदमे के प्रभावित पक्षों द्वारा क्रॉस एफआईआर कराने के उद्देशय से भी दिये जाते हैं। इन्हें शामिल पत्रावली करके जांच की जाती है। एक ही मामले में भिन्न भिन्न स्तरों व माध्यमों जैसे माननीय राष्ट्रपति कार्यालय, प्रधानमंत्री कार्यालय, मुख्यमंत्री कार्यालय, लोकायुक्त, मानवाधिकार आयोग, बाल आयोग, एससी एसटी आयोग इत्यादि से विभिन्न पुलिस कार्यालयों में परिवाद प्राप्त होते है।
155 दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार, असंज्ञेय अपराधों से जुड़े परिवादों पर कार्यवाही का अधिकार पुलिस को नहीं होता हैं। मात्र निरोधात्मक कार्यवाही की मांग वाले परिवादों में एफआईआर दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती। इसी प्रकार कई प्रकार के परिवाद बिना नाम पते अथवा अस्पष्ट विवरण के साथ आते है। विभागों से जुड़े विषयों पर आधरित परिवादों मे एफआईआर दर्ज करना व्यवहारिक नहीं होता है।

    पुलिस के कई प्रशासनिक विषयों से जुडे जैसे किसी थाने चौकी पर नफरी की कमी, सक्रिय रूप से संचालन नहीं होने, विभागीय पदोन्नति, भर्ती परीक्षा, चरित्र सत्यापन, आर्म्स लाईसेंस आदि परिवादों में भी एफआईआर की जरूरत नहीं होती। नागरिकों द्वारा पुलिसकर्मी के आचरण सम्बन्धी शिकायतें भी परिवाद के रूप में दी जाती हैं जो कि एफआईआर का विषय न होकर विभागीय जांच का विषय होती है।
    जागरूक नागरिकों द्वारा अपने क्षेत्र की यातायात, सार्वजनिक न्यूसेन्स आदि समस्याओं में दिए परिवाद भी एफआईआर के रूप में दर्ज करने योग्य नहीं होते।
    उच्चतम न्यायालय द्वारा ललिता कुमारी बनाम उत्तरप्रदेश सरकार केे निर्णय में संज्ञेय अपराधों में एफआईआर दर्ज करने से पूर्व निश्चित समय में परिस्थितियों के अनुसार प्राथमिक जांच करके एफआईआर दर्ज करने अथवा न करने के विषय में पुलिस को अधिकृत किया है। इनमें वैवाहिक या पारिवारिक विवाद, आर्थिक अपराध, चिकित्सीय लापरवाही के मामले, भ्रष्टाचार संबंधित मामले एवं अत्यधिक विलम्ब से दिये गए परिवाद शामिल हैं। माननीय उचतम न्यायालय ने इस निर्णय में यह भी कहा है कि परिस्थिति के अनुसार पुलिस अन्य कई मामलों में भी एफआईआर दर्ज करने से पहले प्राथमिक जांच कर सकती है।