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वो काटा वो मारा,14 जनवरी ,जयपुर पतंगोत्सव का विशेष दिन

मकर संक्रांति पूण्य,दान का विशेष दिन,जयपुर में इसके साथ पतंगबाज़ी का अपना अनूठा महत्व,आनन्द का उत्सव
जयपुर 12 जनवरी2019।(NIK culture) बरसों से चली आ रही गुलाबी नगर की परंपरा में मकर संक्रांति के अवसर पर दान पुण्य के साथ साथ पतंगबाज़ी का अपना एक विशेष महत्व है। तिल के लड्डू, फीणी, दाल के पकोड़े आदि स्वादिष्ट व्यंजनों का।भोग लगाकर सब मिलकर प्रेम से खाते हैं।

मॉडल प्रिया हिमांशु पतंग के जरिये बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का संदेश देते हुए

इस दिन जयपुर की गलियां चौराहे,छत बारादरी आदि सभी शीला मुन्नी, मोदी राहुल,केजरिवाल लालू आदि चित्रों से बनी पतंगो से अटी होती हैं ।
मकर संक्रांति देश में क्यों और किस तरह मनाई जाती है,संक्षिप्त नज़र
इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि की राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए मकर संक्रांति कहते हैं। जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की किरणों से अमृत की बरसात होने लगती है। इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं। शास्त्रों में यह समय देवताओं का दिन दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा जाता है। मकर संक्रांति सूर्य के उत्तरायण होने से गरम मौसम की शुरुआत होती है। इसे 15 जनवरी को मनाया जाएगा ।

स्नान करने का है विशेष महत्व
मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर लौटता है इसलिए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पूजन करके घी, तिल, कंबल और खिचड़ी का दान किया जाता है। माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना रूप बदलकर स्नान करने आते हैं। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।

भीष्म पितामाह ने चुना था आज का दिन
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। इसके साथ ही इस दिन भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। इस दिन पतंग भी उड़ाई जाती हैं। माना जाता है कि संक्रांति के स्नान के बाद पृथ्वी पर फिर से शुभकार्य की शुरुआत हो जाती है।

दान देने का है महत्व
उत्तर प्रदेश में इस पर्व को दान का पर्व के तौर पर 14 जनवरी को मनाया जाता है। यहां गंगा घाटों पर मेला का आयोजन किया जाता है और खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। संक्रांति के दिन दान देने का विशेष महत्व है।

बच्चों के लिए होता है खास
हरियाणा और पंजाब में 14 जनवरी से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन अग्निदेव की पूजा की जाती है और तिल, गुड़, चावल और मक्के की आहुति दी जाती है। यह पर्व बच्चे और दुल्हनों के लिए बेहद खास होता है।
स्नान के लिए आते हैं लाखों भक्त
प. बंगाल में मकर संक्रांति के दिन गंगासागर पर बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है। इस दिन स्नान करने के व्रत रखते हैं और तिल दान करते हैं। हर साल गंगासागर में स्नान करने के लिए लाखों भक्त यहां आते हैं।
महाराष्ट्र में यह है प्रथा
बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है और यहां पर उड़द की दाल, ऊनी वस्त्र, चावल और तिल के दान देने की परंपरा है। असम में इसे माघ-बिहू और भोगाली बिहू के नाम से जानते हैं। वही महाराष्ट्र में इस दिन गूल नामक हलवे को बांटने की प्रथा है।
तीन दिन होती है पूजा
तमिलनाडू में मकर संक्रांति के पर्व को चार दिनों तक मनाया जाता है। पहला दिन भोगी-पोंगल, दूसरा दिन सूर्य- पोंगल, तीसरा दिन मट्टू-पोंगल और चौथा दिन कन्‍या-पोंगल के रूप में मनाते हैं। यहां दिनों के अनुसार पूजा और अर्चना की जाती है।

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